इंजीनियर से बनराकस बनने तक का सफ़र, फुलेरा के भूषण की कहानी

इंजीनियर से बनराकस बनने तक का सफ़र, फुलेरा के भूषण की कहानी

 

सोचा कुछ, किया कुछ और हुआ कुछ

ऐमेज़ॉन प्राइम पर आई पंचायत के पहले भाग में एक छोटे से किरदार में नज़र आने वाले भूषण जो पंचायत 2 में बनराकस बन कर सामने आए। हालांकि उन्हें शायद ये नही पता होगा कि उनके गाँव के लोग ही उन्हें बनराकस कहते हैं। उन्हें पता तो ये भी नही था की इंजीनियर बनते-बनते बनराकस कैसे बन गए। ऐमेज़ॉन प्राइम पर आइ वेबसरीज़ पंचायत 2 अपनी रिलीज़ के बाद चर्चा में है। दर्शकों से इस वेब्सिरिज़ ने पंचायत जितना ही प्यार बटोरा है। हर किसी के ज़ुबान पर कोई न कोई डायलॉग ज़रूर है, "आप कहना का चाहते हैं, हमारा पिंटू बवासीर है?"" "का सचिब जी"? ये डायलॉग्स जैसे पंचायत के स्तम्भ हो गए हों। 

चाहे फ़िल्म हो या वेबसीरीज़, कोई भी कहानी एक विलेन के बिना अधूरी रह जाती है। एक विलेन, जो थोड़ा स्टड टाइप का हो, जो हीरो को चैलेंज करे, थोड़ा फाइट-वाइट हो, अपनी बॉडी-वोडी दिखाए। लेकिन अगर मैं कहूँ की विलेन गमछा रखे, खैनी पीटते हुए, चाय की टपरी पर टाइम पास कर रहा हो तो, और फिर पंचायत सचिव अभीशेक को देख कर ज़ोर से कहे, "का सचिब जी ??????'' अब या तो आप ये सोचेंगे कि की एसा विलेन कहाँ होता है, या फिर आपने पंचायत 2 देख लिया है और समझ चुके हैं कि मैं भूषण उर्फ़ बनराकस की बात रहा हूँ । 

दरसल पंचायत 2 में भूषण के किरदार में नज़र आने वाले शख्स का असली नाम दुर्गेश कुमार है, जो फुलेरा गाँव की व्यवस्था को देखते हुए हर बात में पंचायत सचिव और प्रधान को लपेटे में लेते नज़र आ रहे हैं, भूषण अपनी पत्नी को गांव का प्रधान यानी कि नायक बनाना चाहते थे, फ़िर पता चला की वो खुद ही खलनायक बन गए । हालाँकि दुर्गेश के इस किरदार ने पंचायत प्रेमियों को खूब प्रभावित किया है । 

 

 

जिया हो बिहार के लाला 

दुर्गेश कुमार ऑफिस सहायक विकास यानि चंदन रॉय के जैसे ही बिहार के रहने वाले हैं। दरभंगा के दुर्गेश को इंजीनियरिंग करनी थी, इनके भाई दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी करते थे जिनके साथ रह कर दुर्गेश ने इंजीनियरिंग की तैयारी की लेकिन पढ़ाई वाले माहौल में रहने के बावजूद भी वो इंजीनियरिंग नही कर पाए। उन्होंने फ़िर शौकिया तौर पर थियेटर जॉइन कर लिया । 

 

पिके के लिए ऑडिशन, हाइवे में ब्रेक 

 

दुर्गेश कुमार को अपने करियर का पहला ब्रेक इम्तियाज़ अली की फिल्म हाईवे में मिला, जिसके बाद उन्होंने व्हाई चिट इंडिया, सुल्तान, संजू और दिल बेचारा जैसी फ़िल्म में छोटे-छोटे किरदार निभाए। ऐमेज़ॉन प्राइम पर आई पंचायत में उन्हें जी भर के अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दिया गया, उन्होंने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया है और पूरी कोशिश की है की बनराकस का प्रकोप लंबे समय तक दर्शकों के दिमाग में घूमता रहे। सीरीज़ देखने के बाद आपको भूषण से नफरत ज़रूर हो जाएगी, लेकिन इस आर्टिकल को पढ़ने के बात आपको दुर्गेश से प्यार हो जाएगा । 

एनएसडी 0 KM 

इंजीनियर ना बन पाने का मलाल दुर्गेश को नहीं था। मंडी हाउस में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ड्रामा का चक्कर लगाते लगाते दुर्गेश आख़िरकार एनएसडी में दाखिल हो गए जहां उनकी कला को तराश मिली। 3 साल के कोर्स के बाद उन्होंने दिल्ली में कई थिएटर किए और फिर काम की उम्मीद में माया नगरी मुम्बई आ गए। 

 

शुक्रिया अमेज़ॉन 

हिंदी सिनेमा की बड़ी फिल्मों में कहीं न कहीं नए कलाकारों के साथ भेदभाव होता है। जिन्हें हम छोटा कलाकार समझते हैं, वो महज़ एक छोटे कलाकार नहीं बल्कि अपनी संघर्ष भरी ज़िंदगी का जीता जागता तजुर्बा लिए OTT प्लैटफॉर्म पर दिख रहे होते हैं । हमारे लिए वो किसी सीरीज़ के महज़ एक और किरदार हों, लेकिन वो किरदार उस कलाकर के मेहनत और लगन का हासिल होता है। वही कलाकार जिन्हें हिंदी सिनेमा में कभी विलेन का असिटेंट तो कभी लोगो की भीड़ वाले सिन में खड़ा कर दिया गया और कभी गांव वाला बना दिया। सीधे तौर पर कहें तो एनएसडी जैसे प्रसिद्ध संस्थान के लड़के जब वहां से बाहर निकलते हैं तो उन्हें उनकी काबिलियत पर नहीं, उनके रंग-रूप पर आंका जाने लगता है। इन सब के बिच भी एक अच्छा कलाकार अपने दर्शकों के दिल में जगह बनाने में कामयाब हो जाता है। वो अपनी कला का एक ऐसा प्रभाव छोड़ता है की आज के जेनेरेशन का लड़का शोले के कालिया की मिमिक्री करते हुए कहता है, ''सरदार मैने आपका नमक खाया है'' 

ऐमेज़ॉन प्राइम ने मायानगरी के जाल में फंसे कितने ही कलाकारों को फुलेरा का रास्ता दिखाया, OTT पर चर्चा में रहने वाले वेबरीरिज़ जो नए चेहरों को मौका दे रहे हैं उनको थैंक्यू तो बनता है, अगर वो नहीं होते तो शायद ना भूषण होता ना ही उनकी कहानी।